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छठ पूजा की शुरुआत के बीच लोकगायिका शारदा सिन्हा का निधन, दिल्ली एम्स में ली आखिरी सांस

sharda sinha death

Sharda Sinha Death: ‘बिहार की कोकिला’ के नाम से प्रसिद्ध और लोकगायिका शारदा सिन्हा का 72 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्होंने मंगलवार, 5 नवंबर 2024 को दिल्ली के एम्स अस्पताल में अंतिम सांस ली। छठ महापर्व की शुरुआत के दिन ही उनके देहांत की खबर ने उनके प्रशंसकों और पूरे बिहार को स्तब्ध कर दिया है। शारदा सिन्हा ने अपने छठ गीतों से इस महापर्व को एक अलग पहचान दी, और उनके बिना इस पर्व की रौनक अधूरी सी लगती है।

एम्स अस्पताल में ली अंतिम सांस

शारदा सिन्हा की तबीयत पिछले महीने से ही खराब चल रही थी, जिसके बाद उन्हें दिल्ली के एम्स में भर्ती कराया गया था। अस्पताल में ICU में इलाज के दौरान उनकी स्थिति थोड़ी स्थिर हुई थी और उन्हें प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट किया गया था, जिससे उनके परिवार और प्रशंसकों को कुछ राहत मिली थी। लेकिन सोमवार की शाम अचानक उनकी तबीयत बिगड़ गई और उन्हें वेंटिलेटर पर शिफ्ट करना पड़ा। उनके बेटे अंशुमन ने सोशल मीडिया के जरिए उनकी तबीयत की जानकारी दी थी, जिसमें उन्होंने बताया कि इंफेक्शन के कारण उनकी स्थिति गंभीर हो गई थी। इसके बाद मंगलवार को शारदा सिन्हा ने अंतिम सांस ली।

शारदा सिन्हा के पति का निधन भी इसी साल हुआ था, जिससे वह पहले से ही भावनात्मक रूप से काफी कमजोर थीं। उनके पति का देहांत ब्रेन हैमरेज के कारण हुआ था। दोनों ने इस साल अपनी शादी की 54वीं सालगिरह मनाई थी, जिसके कुछ ही समय बाद यह दुखद घटना घटीशारदा सिन्हा का जन्म 1 अक्टूबर 1952 को बिहार के सुपौल जिले के हुलास गांव में हुआ था। बचपन से ही संगीत के प्रति उनके रुझान को देखते हुए उनके पिता ने घर पर ही संगीत शिक्षक की व्यवस्था की। उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से स्नातक किया और बाद में संगीत में परास्नातक की पढ़ाई की। उन्होंने भोजपुरी, मैथिली, बज्जिका और मगही जैसी भाषाओं में भी लोकगीत गाए।

छठ महापर्व के साथ गहरा नाता

शारदा सिन्हा का छठ महापर्व से गहरा नाता रहा है। उनके गाए गीत जैसे ‘कांच ही बांस के बहंगिया’, ‘पहिले पहिल छठी मइया’, और ‘पार करिहें ओ छठी मइया’ छठ पर्व का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं। छठ पर्व के दौरान उनके गीत बिहार और उत्तर प्रदेश के गांवों और शहरों में गूंजते हैं। छठ में जिस तरह सूप, डाला और ठेकुआ का महत्व है, उसी तरह शारदा सिन्हा के छठ गीत भी पर्व को संपूर्णता प्रदान करते हैं।

उनके गीतों में बिहार की माटी की खुशबू, भक्ति और समर्पण की भावना होती थी, जो हर घर में छठी मइया के प्रति श्रद्धा को प्रकट करती है। उनके गीतों में पारंपरिक छठ की मिठास और भक्ति की भावना भरी होती है। ‘पहिले पहिल छठी मइया’, ‘उठऊ सूरज भइले बिहान’, ‘हे छठी मइया’ और ‘सोना सट कुनिया’ जैसे गीत लोगों के दिलों में बसे हुए हैं। ये गीत केवल संगीत नहीं, बल्कि बिहार की संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुके हैं।

बॉलीवुड में भी बिखेरा जादू

शारदा सिन्हा ने केवल लोकगीतों में ही नहीं, बल्कि बॉलीवुड में भी अपनी पहचान बनाई। 1989 में फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ में उनका गाया गीत ‘कहे तोसे सजना’ आज भी श्रोताओं के बीच लोकप्रिय है। इसके अलावा, 1994 की फिल्म ‘हम आपके हैं कौन’ में ‘बाबुल’ गीत और ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर 2’ में ‘तार बिजली से पतले हमारे पिया’ जैसे गीतों ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। उन्होंने बॉलीवुड के माध्यम से लोकगीतों को देश के कोने-कोने तक पहुँचाया।

संगीत के क्षेत्र में उनके योगदान को मान्यता देते हुए भारत सरकार ने उन्हें 1991 में पद्मश्री और 2018 में पद्म भूषण से सम्मानित किया। ये सम्मान उनकी कला, समर्पण और भारतीय लोक संगीत के प्रति उनके योगदान को दर्शाते हैं। उनके निधन के साथ भारतीय लोक संगीत ने एक महत्वपूर्ण अध्याय को खो दिया है। शारदा सिन्हा के गीत केवल संगीत नहीं, बल्कि बिहार और उत्तर भारत की परंपरा और सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं।

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